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Politics

नेतानगरी: महाराष्ट्र और झारखंड चुनावों में इस हफ्ते के कुछ प्रमुख घटनाक्रम

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Jharkhand elections में Tiger Jairam Mahato बिगाड़ेंगे किसका खेल? Maharashtra elections में Mahayuti और Mahavikas Aghadi गठबंधन में कौन सी पार्टी है कमजोर कड़ी? नेतानगरी में इन सब पर विस्तार से चर्चा.

इस हफ्ते महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनावों को लेकर कई दिलचस्प घटनाक्रम सामने आए हैं। चुनावी मैदान में इस बार कुछ ऐसे उलटफेर देखने को मिल रहे हैं, जिनका पहले से अनुमान लगाना चुनावी पंडितों के लिए भी मुश्किल हो रहा है। चुनावी माहौल इस कदर उलझा हुआ है कि पहले से किए गए अनुमान अब कई जगह पर धरे के धरे रह गए हैं।

महाराष्ट्र चुनाव:

महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के अंतिम दिनों में राजनीतिक दलों ने हर हथकंडा अपनाना शुरू कर दिया है। बीजेपी और शिंदे गुट के बीच सत्ता को लेकर जो खींचतान चल रही है, वह लगातार सुर्खियां बन रही है। खासकर यह सवाल उठ रहा है कि अगर महायुति (बीजेपी-शिंदे गुट) चुनाव जीतती है, तो क्या शिंदे को मुख्यमंत्री बनने का मौका मिलेगा?

बीजेपी के अंदर खामोशी से यह चर्चा हो रही है कि क्या बीजेपी शिंदे के नेतृत्व को स्वीकार करेगी या फिर अपना उम्मीदवार पेश करेगी? महाराष्ट्र की राजनीति में यह सवाल काफी महत्वपूर्ण हो गया है, क्योंकि इस बार के चुनावी परिणाम महा-आघाड़ी और महायुति दोनों के लिए निर्णायक हो सकते हैं।

झारखंड चुनाव:

झारखंड में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की “मैया सम्मान योजना” ने चुनावी माहौल में नया रंग भर दिया है। इस योजना के तहत राज्य सरकार ने महिलाओं के लिए आर्थिक सहायता देने का वादा किया है, जो एक प्रकार से चुनावी दांव बन सकता है। इसे लेकर यह अटकलें हैं कि यह योजना आदिवासी और महिला वोटरों को आकर्षित कर सकती है, जो सोरेन सरकार की जीत के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकती है।

चुनाव परिणामों के मद्देनज़र यह देखना अहम होगा कि क्या इस योजना से झारखंड की राजनीतिक धारा में कोई बड़ा बदलाव आएगा या फिर विपक्ष इसे केवल चुनावी प्रचार का हिस्सा मानकर नकार देगा।

बीजेपी और बांग्लादेशी घुसपैठी का मुद्दा:

बीजेपी ने बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा जोर-शोर से उठाया है, और इसके जरिए वो राज्य की सुरक्षा के मुद्दे को हवा दे रही है। इसके माध्यम से बीजेपी यह कोशिश कर रही है कि वह अपनी पहचान को फिर से स्पष्ट कर सके और अपने हिंदू समर्थक वोट बैंक को मजबूत कर सके।

विशेषज्ञों का मानना है कि यह मुद्दा उन इलाकों में बीजेपी के लिए फायदेमंद हो सकता है, जहां धर्म और सुरक्षा के मुद्दे पर लोगों की चिंता अधिक होती है। हालांकि, इस मुद्दे को लेकर विपक्षी दलों ने इसे सत्ताधारी पार्टी का चुनावी दांव बताया है, और इसे बांग्लादेशी घुसपैठियों से जुड़े मुद्दों को लेकर जनमानस को गुमराह करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।

चुनावी भविष्यवाणियाँ और अनिश्चितता:

चुनावों के आखिरी दौर में परिणामों की भविष्यवाणी करने में चुनावी पंडित भी हिचकिचा रहे हैं। इसके पीछे कारण यह है कि चुनावी रणनीतियों में तेज़ी से बदलाव हो रहे हैं, और यह भी संभव है कि कई सीटों पर निर्णायक मुकाबला हो। कई मामलों में पूर्वानुमान अब उलट-पलट रहे हैं, जिससे राजनीतिक पंडितों के लिए भी स्थिति कुछ जटिल हो गई है।

इस हफ्ते की राजनीति में ये सभी मुद्दे गहराई से चर्चा का हिस्सा बने हैं, और परिणामों को लेकर अनिश्चितता का माहौल बना हुआ है। यह देखना होगा कि कौन सी रणनीतियाँ पार्टियाँ आखिरी वक्त में अपनाती हैं, और किसका असर चुनावी नतीजों पर ज्यादा पड़ता है।